'ध्यान' में भी मन में हजारों चीजें आ सकती हैं, परंतु यदि आप इन सभी द्वंद्वों से ऊपर उठ पाते हैं और ये प्रश्न नहीं करते कि वे क्यों आये, और उनसे बेपरवाह रह पाते हैं, तो यह आपको ध्यान में और गहरे ले जाता है। यह सोचते हुए कि ऐसे विचार क्यों आते हैं, आप द्वंद्व का हिस्सा बन जाते हो, और यह आपको दुर्बल बना देता है। उन्हें आने-जाने दे। सोचो कि आपका उनसे कोई लेना-देना नहीं है। यह अंतर्द्वन्द्व पर विजय पाने की युक्ति है।
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जब भी अंतर्द्वन्द्व उत्पन्न हो, यह युक्ति आपको याद दिलायेगी कि आप द्वंद्व से कहीं अधिक बडे और शक्तिशाली है। तब आप इससे ऊपर उठ जाएँगे, बादलों के ऊपर, उन से पार, निर्मल आकाश में।
~ *गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर*
(साभार ऋषिमुख से)
ॐ नमः शिवाय